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कर्ज का मर्ज और उसकी दवा


अखबारो की सुर्खियां में कंपनियों की संपत्ति  बढ़ने  के समाचार छपते हैं तो कई लोग खशी वयक्त करते हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि लोगों पर कर्ज भी उसी अनुपात में बढ़ने लगता है।बहुत सारे लोग कंपनियों की संपत्ति बढ़ने को देश का विकास मान लेते हैं ।सच्चाई यह है कि यह दोनों बातें विपरीत अनुपाती हैं। अगर कंपनियों की आय बढ़ेगी तो लोगों की आय घटेगी और कर्ज बढ़ेगा।


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यह तुला के दोनों  पलड़ों की भांति है । अगर कहीं संपत्ति एकत्रित हो रही है तो निश्चित तौर पर कहीं न कहीं से निकल कर आ रही  होती है। देसी भाषा में कहा  जाए  तो यह उसी प्रकार से है जैसे कहीं पर मिट्टी का ढेर बड़ा हो रहा है तो उसका कारण कहीं न कहीं  से मिट्टी का खोदा जाना  होता है। इस प्रकार अगर कुछ कंपनियों की संपत्ति बढ़ रही है वे अरबपति, खरबपति बन रहे हैं तो दूसरी तरफ कंगाली भी उसी अनुपात में बढ़ती जाती है। यह अंतर्राष्ट्रीय प्रवृति है क्योंकि वित्तीय पूंजी अंतरराष्ट्रीय तौर पर काम कर रही है।

  

कर्ज  का कारण कृषि उत्पादकों व उपभोक्ताओं ,

श्रमिकों कर्मचारियों के शोषण, उनको कम वेतन देने, ज्यादा घंटे काम करवाने अस्थाई भर्ती करने, नई भर्ती न करने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को  महंगा  किए जाने के परिणाम स्वरूप  होता है।  निजी क्षेत्र की महंगी  सेवायों को प्राप्त  करने के लिए तरह-तरह के कर्ज लेने  पड़ते हैं।


हर कोई जो कर्ज लौटाने लायक है  या नहीं वह  अपने सीने पर हाथ रख  सोचे  तो  पता चलेगा कि वह आज  अपनी हैसियत से भी ज्यादा किसी न किसी प्रकार के कर्ज के जाल में फंसा हुआ है।

  

वह कर्ज चाहे क्रॉप लोन हो, हाउस लोन हो,  बिल्डिंग लोन हो, व्हीकल लोन हो ,एजुकेशन लोन हो, हेल्थ लोन हो,  कारोबार या स्वरोजगार लोन हो,बच्चों की शादी के लिए लोन,बैंकों से लोन हो ,निजी साहूकार से लोन हो या स्वयं सहायता समूह की कमेटियों से  लिया लोन हो या विदेश में पढ़ाई के लिए कर्ज हो। यह सब वित्तीय पूंजी का कारोबार है जो लोगों को कर्ज में फसाने के लिए बनाई गई नीतियों के कारण होता है।  क्रय शक्ति की कमी के कारण लोग  अपनी ज़रूरत को पूरा करने के लिए कर्ज लेते हैं, फिर उस कर्ज की किश्तों को उतारने के लिए कर्ज लेना पड़ता है

    

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विदेशों में पढ़ाई /काम करने वाले  बच्चों को किश्तें उतारने के लिए ज्यादा घंटे काम करना  पड़ता है।उनके पास जिन्दगी के अन्य सुखों को भोगने/ फुरसत का समय नहीं बचता और जिनके पास काम नहीं उनकी जिन्दगी काम  के बिना बोझ बन जाती है। नागरिकता के बिना रहने  वाले बच्चों को सस्ती दर की मज़दूरी पर काम करना पड़ता है। जीवन यापन में बहुत सारी कटौतीयां करनी पड़ती है। लेकिन किश्तों का बोझ बना रहता है।

          


अक्सर लोगों को कर्ज तो दे दिए जाते  हैं लेकिन उनके पास रोजगार न होने के कारण कर्ज की किश्तें वापिस नहीं कर पाते। हम जानते हैं  कि इसलिए अमेरिका में 2008 में तथा  बाद में भी बैंकों के डूबने का  यही कारण बना था। फिर लोगों की जमा पूंजी से इन बैकों को बेल आऊट पेकेज दिए गए जो लोगों के लिए ' कोढ़ में खाज ' का कारण बनता गया।

   

वित्तीय पूंजी लोगों को कर्ज देकर अमरबेल  की तरह काम कर रही है। यह  उपभोक्ता, किसान, मज़दूर, कर्मचारी , कर्जदारों का आदि का ख़ून चूस कर ही जिंदा रह सकती है।

      

इससे छुटकारा मात्र एक ही तरीके से पाया जा सकता है कि लोगों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा तथा स्वास्थ्य की गारंटी हो ।

वह चाहे किसी भी अस्पताल में अपना इलाज करवाए ,किसी भी स्कूल में अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाए। वहां शिक्षा और स्वास्थ्य मुफ्त और अनिवार्य होने चाहिए ।चाहे देश में हो चाहे विदेश में।सारी  जिम्मेदारी सरकार की होनी चाहिए। इससे लोगों के जीवन आवश्यक खर्च घट जाएंगे और उनके पास रोजगार होने के कारण उनकी क्रयशक्ति बढ़ जायेगी। बच्चों को कर्ज लेकर विदेश भी नहीं जाना पड़ेगा। प्रवास के कष्ट भी नहीं झेलने पड़ेंगे।

          

शिक्षा प्राप्त करने के बाद रोजगार की गारंटी हो तथा उसकी योग्यता अनुसार काम और काम के अनुसार दाम का कानून हो । इसके  अलावा किसी भी तरीके से कर्ज  में फंसी  90% जनता का भला नहीं हो सकता।

 

वित्तीय पूंजी के हमलों का मुकाबला करने के लिए पूरे देश में प्रत्येक नौजवान को योग्यता अनुसार काम और काम के अनुसार दाम का कानून बनाना होगा।


     

जिसके अंतर्गत अकुशल को 30000 अर्ध कुशल को 35000 कुशल को 45 000 तथा उच्च कुशल को₹60000 प्रति माह रोजगार की गारंटी होनी चाहिए ।इसका कानून संसद में पारित किया जाना चाहिए ।इस कानून का नाम "भगत सिंह राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून"BNEGA होना चाहिए सबको रोजगार देने के लिए तकनीक की उन्नति के अनुपात में 8 घंटे वाले  कार्य दिवस को 6 घंटे का करने का कानून भी संसद में पारित होना चाहिए। जिससे काम का समय25% घटेगा और रोजगार के अवसर33% बढ़ेंगे । ' सरबत के भले ' वाला समाज बनाया जाए। जिनके पास free time नहीं उन्हे समय तथा जिनके पास रोज़गार नहीं उन्हें रोजगार  मिलेगा।इसके अलावा कोई भी सूत्र इस  सामाजिक संकट को हल नहीं कर सकता।  लोगों की वास्तविक आय नहीं बढ़ा सकता।कर्ज से मुक्ति नहीं दिला सकता।





रचनात्मक

सार्दुल सिंह
सचिव, भगत सिंह पुस्तकालय
श्री करनपुर

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