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पशु स्वास्थ्य...नवजात बछड़े की बीमारियां व उपचार


 






मवेशी या अन्य पशुधन के बीमार हो जाने पर उनका ईलाज करने के वनिस्पत इन्हें तंदुरूस्त बनाए रखने का इंतजाम करना ज्यादा अच्छा है। रोगों का प्रकोप कमजोर मवेशियों पर ज्यादा होता है। सतर्क रहकर पशुपालक अपने पशुधन को बीमार होने से बचा सकते हैं। नवजात बछड़े को मुख्यत: होने वाली बीमारियां व उपचार निम्नलिखित हैं  



सफेद दस्त - यह एक छूतदार बैक्टीरियल रोग है, जो कि 2-3 सप्ताह तक के बछड़े में अधिकतर होती है। इसका मुख्य लक्षण बछड़े में लगातार सफेद दस्त का होना है, जिससे बछड़े में कमजोरी आ जाती है। बीमारी की तीव्र अवस्था में बछड़ा मर भी जाता है।


कारण - पशु के भोजन में अकस्मात् परिवर्तन, अस्वच्छ बर्तन, रोशनी तथा हवा का अनुचित प्रबन्ध, पशु को फफूंदी वाला व सड़़ा गला भोजन खिलाना, मल-मूत्र की सफाई में कमी व अस्वच्छता पूर्ण वातावरण एवं गाय के ऊधस को साफ ना करना आदि ऐसे कारण है, जिनसे यह रोग बछड़ों में बड़ी तेजी से फैलता है।


लक्षण - पैदा होने के कुछ समय पश्चात् ही दस्त आने प्रारम्भ हो जाते हैं। दस्त का रंग प्राय: सफेद या पीला झागयुक्त हो जाता है। बछड़ा खाना-पीना बंद कर देता है। आँखें अन्दर धंस जाना, त्वचा का कठोर होना, आरम्भ में तापमान बढऩा व दुर्बलता आने पर तापमान सामान्य से भी कम की तरफ चला जाना मुख्य लक्षण है।


घरेलू उपचार - खीस पिलाना, खीस की अनुपस्थिति में गाय की सामान्य लस्सी पिलाना, नमक की मात्रा अधिक देना व दिन में 4 बार ग्लूकोज को चूने के पानी में मिलाकर पिलाना चाहिए।

रोग के निदान व उपचार के लिए अनुभवी पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही एन्टीबॉयटिक का सेवन व रोग प्रतिरोधक टीका लगवाएं।



सूंढ पकना (नाभि रोग)  बछड़े की नाल को गन्दे चाकू से काटने व नाल पर एन्टिसेप्टिक दवा का प्रयोग न करने पर नाभि रोग हो जाता है। बछड़े द्वारा नाल को चूसना व देरी से सूखने की स्थिति में यह रोग बढ़ जाता है।


लक्षण - नाभि से दुर्गंध वाला द्रव स्त्रावित होना, नाभि में सूजन, बछड़े का सुस्त होना व उसे बुखार रहना मुख्य लक्षण है। नाभि का संक्रमण यकृत व जोड़ोंं तक भी पहुंच जाता है। अत: जोड़ों मेंं दर्द व सूजन होने से बछड़ा लंगड़ाकर चलता है। रोग की गम्भीर अवस्था में जोड़ों की सूजन फटने से रक्त मिला जल स्त्रावित होता है व बछड़ा चलने योग्य नहीं रहता।


घरेलू उपचार- नाभि को स्वच्छ व निसंक्रमित चाकू से काटना चाहिए, नाभि को चूसने से रोकना चाहिए, नाभि में भरे गन्दे बदबूदार द्रव को निकालकर एक्ट्रेजेन्ट घोल से धोना चाहिए तथा स्वस्थ बछड़ों को अलग रखना चाहिए। रोग के बढऩे की स्थिति में सम्बन्धित पशु चिकित्सक से ईलाज करवाना चाहिए।



पौषणिक दस्त (दूध की अपच)  नवजात बछड़े में यह रोग प्राय: हो जाता है। बछड़ों में गाय का दूध न पचने के कारण आंतडिय़ों में सूजन आ जाती है, जिससे बछड़े की मृत्यु भी हो सकती है।

कारण :- बछड़े को अनियमित रूप से अधिक दूध पिलाने पर या माँ के दूध के स्थान पर अन्य दूध पिलाने की स्थिति पर यह रोग होता है। बछड़े को खीस ना पिलाना भी मुख्य कारण है।


लक्षण - रोग होने की स्थिति में बछड़ा दूध पीना छोड़ देता है। नाड़ी की गति प्रति मिनट घट जाती है, बछड़ा कमजोर होता जाता है, उसे रंग वाले व बदबू वाले दस्त होते रहते हैं।


घरेलू उपचार - सर्वप्रथम बछड़़े को 20-30 मिली. अरण्डी का तेल देना चाहिए ताकि पेट अच्छी तरह साफ हो जाए। बाद में बछड़़े को पानी मिलाकर दूध देना चाहिए। दस्तों की रोकथाम के लिए कत्था, सोंठ, अजवाईन, बेलगिरी के चूर्ण को दूध में मिलाकर पिलाना चाहिए। कमजोरी दूर करने के लिए इलेक्ट्रॉल को दो चम्मच पानी में घोलकर दिन में दो बार पिलाना चाहिए।

रोग की गम्भीर स्थिति में या गोबर में खून आने पर पशु चिकित्सक की सलाह पर एंटीबायटिक का सेवन करना चाहिए।




बछड़े के गले का रोग - यह प्राय: 6 माह से कम के बछड़ों को पाया जाता है। इसमें भूरे रंग के चकत्ते मुख में श्लेष्मल झिल्ली पर दिखाई देते हैं। यह बीमारी खराब भोजन व अस्वच्छ प्रबन्ध के कारण होती है।


लक्षण - रोगग्रस्त बछड़ों को भोजन पेट तक ले जाने में कठिनाई होती है। ये दूध पीना भी छोड़ देते हैं। बुखार रहता है, दस्त होने से दुर्बलता आ जाती है व बछड़़े की मृत्यु भी हो सकती है।


घरेलू उपचार व रोकथाम - रोगी बछड़े को स्वच्छ बछड़ों से अलग रखना चाहिए, रोगी बछड़े वाले स्थान को अच्छी तरह कीटाणुनाशक से धोकर साफ करना चाहिए।

निदान व उपचार के लिए भी अनुभवी पशु चिकित्सक से ईलाज करवाना चाहिए।












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