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विश्व पुस्तक दिवस (23 अप्रैल, 2023) पर विशेष

पुस्तकें दर्पण की तरह होती हैं, जो मानव के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं



मनुष्य के जीवन व उसके विकास में पुस्तकों का महत्वपूर्ण योगदान है। पुस्तकें हमें हमारी संस्कृति की पहचान कराती है। पुस्तकें दर्पण की तरह होती है, जो मनुष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है तथा मानव के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। पुस्तकें पढऩे की कला को बढ़ावा देने तथा पुस्तकों को सम्मान देने के मद्देनजर पुस्तक दिवस मनाया जाता है। पुस्तकों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए ‘युनेस्को’ द्वारा 23 अप्रैल, 1995 को पुस्तक दिवस की शुरूआत की गई थी, तब से हर वर्ष 23 अप्रैल को पुस्तक दिवस मनाया जाता है।

विश्व में जितने भी महापुरूष हुए हैं, उन सभी के जीवन में पुस्तकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जो पुस्तकों से दोस्ती कर लेता है, उसे अन्य दोस्तों की जरूरत कम हो जाती है। महात्मा गाँधी जी ने पुस्तकों के महत्व के बारे में लिखा है कि ‘पुस्तकों का मूल्य रत्नों से भी अधिक है, क्योंकि रत्न बाहरी चमक-दमक दिखाते हैं, जबकि पुस्तकें आंतरिक अंत:करण को उज्ज्वल बनाती है।’ महान दार्शनिक मिल्टन के पुस्तक के प्रति विचार इस प्रकार हैं - ‘अच्छी पुस्तक एक महान आत्मा का अमूल्य रक्त है, मनुष्य जब किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है, तब पुस्तकें ही उसकी मार्गदर्शक सिद्ध होती है।’ पं. जवाहरलाल नेहरू अक्सर कहते थे 

पुस्तकें तो ज्ञान का सागर है। इसे हम जितनी सफाई और हिफाजत से रखेंगे, उतना ही हमारा मन लगेगा और ज्ञान मिलेगा।’ वे बच्चों को अवकाश के समय पुस्तकें पढऩे के लिए कहा करते थे। ‘विलियम फेदर’ ने पुस्तक के सम्बन्ध में कहा है - ‘किताब आपका दिमाग खोलती है, सोच को बड़ा करती है और आपको मजबूत बनाती है। ऐसा और कोई नहीं कर सकता।’ आज टी.वी. मोबाइल के कारण विद्यार्थी किताबों से दूर होते जा रहे हैं। स्वाध्याय की प्रवृत्ति समाप्त होती जा रही है। स्वाध्याय से व्यक्ति को मानसिक खुराक मिलती है। मनुष्य तरोताजा हो जाता है। ‘मनुस्मृति’ में भी कहा गया है कि ‘स्वाध्याये - नित्ययुक्त: स्यात:।’ अर्थात् स्वाध्याय में नित्य तत्पर रहना चाहिए। अच्छी पुस्तकें मनुष्य को असत् से सत् की ओर ले जाती हैं। पुस्तकों पर डॉ. अब्दुल कलाम के विचार है कि ‘एक अच्छी पुस्तक सौ दोस्तों के बराबर है तथा एक अच्छा दोस्त एक पुस्तकालय के बराबर होता है।’

पुस्तकें बच्चों के मानसिक विकास को बढ़ावा देती है तथा अकेलेपन की भावना को खत्म करती है। पुस्तकें मनोरंजन का जरिया है तथा सीखने की योग्यता रखती है। किताबें ज्ञान को बढ़ाती हैं। दिमाग को तंदुरूस्त रखती है तथा दुनिया को समझने में सहायता देती है। किताबों से बढक़र वफादार कोई दोस्त नहीं है।

किताब मनुष्य की कल्पनाओं को प्रज्ज्वलित करने का एक माध्यम है। स्टीफेन किंग के अनुसार ‘अच्छी पुस्तकें अपना सारा राज एक बार में नहीं बताती हैं।’ अब्राहिम लिंकन का पुस्तकों से गहरा लगाव था। राष्ट्रपति बनने से पहले उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी थी। वे बहती नदी पार करके न्यायाधीश से पुस्तकें लेकर और कभी-कभी पुस्तकालय से पुस्तकें लाकर लकड़ी की रोशनी में स्वाध्याय करते हुए ज्ञान अर्जित कर इतने बड़े पद पर पहुंचे। लिंकन के विचारानुसार किताबें ये बताती हैं कि उसके मूल विचार बिलकुल नये नहीं हैं। इसी प्रकार ‘जार्ज बनार्ड शा’ को भी बचपन से ही पुस्तकें पढऩे का शोक था।

तब उसके साथी बच्चे खेल रहे होते तो वे किसी न किसी पुस्तक को पढऩे में तल्लीन रहते थे। यह पुस्तकों का ही प्रभाव था कि पश्चिम में जन्म लेकर भी उन्होंने मांसाहार का विरोध किया। उन्होंने लिखा भी है कि ‘प्रत्येक पुस्तक से मुझे कोई अच्छी बात सीखने को मिलती है।’ थॉमसन जेफरसन के विचारों में ‘ईमानदारी ज्ञान की किताब का पहला अध्याय है।’ 

कन्फयूशिन्यस के अनुसार ‘आप बिना कुछ सीखे, किताब नहीं खोल सकते। पुस्तकों में ज्ञान का खजाना छुपा है, जिसे कोई लुटेरा कभी लूट नहीं सकता।’ गिरिसन टेलर के विचारों में ‘किताब एक ऐसा उपहार है, जिसे आप बार-बार खोल सकते हैं।’ चाल्र्स विलियम के अनुसार ‘किताबें शान्त और सबसे सदाबहार दोस्त है तथा सबसे धैर्यवान शिक्षक है।’ एक आदर्श विचारक के अनुसार ‘कुछ किताबों को चखना चाहिए, कुछ को निगलना, लेकिन बस कुछ को ही अच्छे से चबाना और पचाना चाहिए। किताबें दिमाग की खुराक होती है।’

आज के भौतिकवादी युग में क्या युवा पीढ़ी, क्या व्यस्क सभी टी.वी. मोबाईल व इंटरनेट फेसबुक से जुड़े हैं। अधिकांश मनुष्य अवसाद से घिरे हुए तनावपूर्ण जिंदगी जी रहे हैं। इस स्थिति के जितने भी कारण हैं, उसमें एक प्रमुख कारण पुस्तकों के प्रति रूचि व प्रेम गायब होना तथा स्वाध्याय की प्रवृत्ति का दिन-प्रतिदिन कम होना है। अत: आज हमें चिंतन करना होगा कि अच्छी पुस्तकें संसार की सर्वश्रेष्ठ पूंजी है। 


युवा पीढ़ी में स्वाध्याय की आदत विकसित कर उनमें चरित्र निर्माण के लिए जागरूक करना चाहिए। विश्व पुस्तक दिवस पर डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के इन शब्दों कि ‘कम खाओ और अधिक पढ़ो’ को जीवन में आत्मसात करने की आवश्यकता है। आज के दिन पुस्तकों की प्रदर्शनी लगाई जानी चाहिए। विद्यालय, कॉलेज, पुस्तकालयों व सामाजिक संगठनों द्वारा पुस्तक पर सेमीनार तथा वार्ताऐं आयोजित किए जाने चाहिए। महापुरुषों की जीवनी पर आधारित पुस्तकें व साहित्य से जुड़ी पुस्तकें पुस्तकालयों तथा अन्य सार्वजनिक स्थलों पर सहज सुलभ उपलब्ध करवाकर विद्यार्थियों, युवाओं सहित प्रत्येक वर्ग में पुस्तक प्रेम व स्वाध्याय की आदत विकसित करने से ही वास्तव में विश्व पुस्तक दिवस मनाना

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