उनका जन्म 18 फरवरी, 1883 को पंजाब प्रान्त के एक सम्पन्न हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता दित्तामल जी सिविल सर्जन थे तथा माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था और जब मदनलाल को भारतीय स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रांति के आरोप में लाहौर के एक कॉलेज से निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया। इस पर मदनलाल ढींगरा को जीवनयापन के लिये पहले एक क्लर्क के रूप में, फिर एक तांगा-चालक के रूप में और अंत में एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा। कारखाने में श्रमिकों की दशा सुधारने हेतु उन्होंने यूनियन बनाने की कोशिश की किन्तु वहाँ से भी उन्हें निकाल दिया गया।
कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में काम किया, फिर अपनी बड़े भाई की सलाह पर सन् 1906 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैंड चले गए, जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में यांत्रिकी अभियांत्रिकी में प्रवेश ले लिया। विदेश में रहकर अध्ययन करने के लिये उन्हें उनके बड़े भाई ने तो सहायता दी ही, इंग्लैण्ड में रह रहे कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से भी आर्थिक मदद मिली थी।
श्री बहल ने कहा कि लंदन में धींगड़ा भारत के प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्ण वर्मा के सम्पर्क में आये। वे लोग धींगड़ा की प्रचण्ड देशभक्ति से बहुत प्रभावित हुए। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सावरकर ने ही मदनलाल को अभिनव भारत नामक क्रान्तिकारी संस्था का सदस्य बनाया और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। मदनलाल धींगड़ा इण्डिया हाउस में रहते थे, जो उन दिनों भारतीय विद्यार्थियों के राजनीतिक क्रियाकलापों का केंद्र हुआ करता था। ये लोग उस समय खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सतिंदर पाल और काशीराम जैसे क्रांतिकारियों को मृत्युदण्ड दिये जाने से बहुत क्रोधित थे। इन्ही घटनाओं ने सावरकर और धींगड़ा को सीधे बदला लेने के लिये विवश किया।
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1 जुलाई, 1909 की शाम को इण्डियन नेशनल एसोसिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिए भारी संख्या में भारतीय और अंग्रेज इकठे हुए। जैसे ही भारत सचिव के राजनीतिक सलाहकार सर विलियम हट कर्जन वायली अपनी पत्नी के साथ हाल में घुसे, ढींगरा ने उनके चेहरे पर पाँच गोलियाँ दागी; इसमें से चार सही निशाने पर लगीं।
उसके बाद मदनलाल ढींगरा ने अपनी पिस्तौल से स्वयं को भी गोली मारनी चाही, किन्तु उन्हें पकड़ लिया गया। 23 जुलाई, 1909 को इस मामले की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट में हुई। अदालत ने उन्हें मृत्युदण्ड का आदेश दिया और 17 अगस्त, 1909 को लंदन की पेंटविले जेल में फांसी पर लटका कर उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। महान क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा मर कर भी अमर हो गये। मदनलाल ढींगरा का अजमेर में स्मारक बना हुआ है तथा उनकी स्मृति में भारत सरकार द्वारा 1992 में डाक टिकट भी जारी किया गया है।
इस अवसर पर प्रदेश महासचिव सूर्यवंशी सिमरजीत सिंह मरवाहा, जिला प्रवक्ता सूर्यवंशी तेजवीर सिंह सोई, सूर्यवंशी सन्नी जसूजा, सूर्यवंशी अमित नरूला, सूर्यवंशी अरुण बहल, सूर्यवंशी मदनलाल, सूर्यवंशी यशपाल, सूर्यवंशी आकाश सहित ऑल इंडिया अरोड़ा खत्री पंजाबी कम्युनिटी पदाधिकारी एवं सदस्य उपस्थित थे।
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