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कृत्रिम बौद्धिकता (AI) के दौर में बेरोजगारी का प्रश्न कैसे हल हो।



आज के दिन समाज के बौद्धिक क्षेत्र में कृत्रिम बौद्धिकता  की चुनौतियां पर चर्चा आमतौर पर की जाती है ।जाने अनजाने साधारण चर्चाओं में तथा विचार गोष्ठियों में भी यह एक ज्वलंत प्रश्न है।
 
साधारण बुद्धि से देखने पर इसके अवगुण नजर आते हैं। लोगों को लगता है कि यह हमारे परंपरागत सामाजिक संस्कारों को तोड़ देगी, सामाजिक संबंधों को नकारात्मक रूप में प्रभावित करेगी। लोगों को आराम प्रस्त बनाएगी ।लोगों को शारीरिक और मानसिक तौर पर कमजोर बनाएगी और इसके दुरुपयोग भी किए जाएंगे।

लेकिन अगर तथ्यात्मक तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार किया जाए तो वर्तमान में जब समाज आर्थिक संसाधनों पर केंद्रीयता की ओर बढ़ रहा है उसके परिणाम स्वरूप समाज में उथल-पुथल  का माहौल है। एक तरफ काम करने वाले करोड़ों लोग काम का इंतजार कर रहे हैं दूसरी तरफ मशीन उत्पादन के अंबार लगा रही है । रोज़गार न होने के परिणाम स्वरूप लोगों की क्रय शक्ति कम होने के कारण उन्हें खरीद नहीं पा रही है और उन्हें मुफ्त के राशन पर अपना जीवन जीना पड़ रहा है।  इस द्वंद्व में से विकसित रास्ता क्या हो? यही आज मुख्य चर्चा का केंद्र बिंदु है।
           
कृत्रिम बौद्धिकता कभी भी मानवीय बौद्धिकता का स्थान नहीं ले पाएगी ।यह उन्नत मशीन का एक रूप है ।मानव सभ्यता में मानव जब पूर्णतया प्रकृति पर निर्भर था तब  वह अपना जीवन यापन प्रकृति से प्राप्त वस्तुओ से ही करता था । ज्यों ही मानव ने औजार बनाना सीख लिया तो वह जानवर से मानव बनने की ओर एक महान  कदम था। यही  मानव और पशु के बीच पाई जाने वाली विभाजन रेखा है कि जानवर  प्रकृति से प्राप्त औजरों का केवल उपयोग ही करता है जबकि मानव प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं से ज़रूरत के अनुसार औजार बनाता है। जिन्हें आजीवन उन्नत करता रहता है।

इसलिए तथ्य यह है कि "आज तक मानव इतिहास औजार को बेहतर करने का इतिहास ही है। 
मानव प्रकृति में से प्राप्त वस्तुओं को मशीनों के सहयोग से उपयोगी बनता है। यह काम समय में होता है ज्यों  ज्यों मानव के द्वारा मशीनों को बेहतर बनाया जाता है  त्यों त्यों उत्पादन का निर्धारित सामाजिक लक्ष्य  प्राप्त करने के लिए मानव श्रम की घटती हुई दर लगानी पड़ती है। इस अनुपात में ही मानव श्रम की कम जरूरत पड़ती है । इसके परिणाम स्वरूप कुछ आदमी  रोज़गार से बाहर  कर  दिए जाते हैं अर्थात बेरोजगार हो  बना दिए जाते हैं । इसको समाज में बेरोजगारी का बढ़ना कहा जाता है।
      
जब बेरोजगारी वाली स्थिति उत्पन्न हो जाए तो उसको ठीक करने के लिए काम के दिन को छोटा करना पड़ता है। इतिहास में हम जानते हैं कि काम के घंटे (काम का दिन )20 ,18, 16 , 14, 12,10 और 8  घण्टे भी रहे हैं। वर्तमान में जिस स्तर पर कृत्रिम बौद्धिकता काम को करने लगी है उसके  उन्नति के अनुपात  में काम के दिन को 8 घंटे से घटा कर 6 घण्टे  तक सीमित किया जाना चाहिए।
       
इससे समय पर 30%  घटेगा और रोजगार के अवसर 33% बढ़ेंगे। इसको उन्नत मशीन के अनुपात मे कार्य दिवस  अवधि समय को आनुपातिक रूप में और भी कम किया जाना चाहिए तथा करना पड़ेगा। इसलिए कृत्रिम बौद्धिकता ए आई से चिंतित होने की बात नहीं है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए ।यह मानवीय काम को आसान करेगी। आदमी को फुर्सत देगी free time  पैदा करके देगी ।इसलिए इसका एकमात्र सामाजिक सदुपयोग यही है कि काम करने के घंटे सीमित किए जाने चाहिए क्योंकि इसका सीधा-सीधा प्रभाव रोजगार के अवसर पर पड़ता है ।
      
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट के अनुसार AI के  प्रभाव से विकसित देशों में 60% रोजगार की कमी आएगी विकासशील देशों में 40% की कमी आएगी तथा ए विकसित देशों में 26% की कमी आएगी ।
वर्तमान दौर में कृत्रिम बौद्धिकता के चलते बेरोजगारी  सबसे बड़ी चुनौती है इसको हल करने का एकमात्र तरीका यही है कि तकनीक की उन्नति के अनुपात में काम के घण्टे घटा कर सबको रोजगार गारंटी का कानून लागू किया जाना चाहिए।
            
वर्तमान परिस्थितियों में देश के किसी भी राज्य में बेरोजगारी का वैज्ञानिक हल नहीं किया जा रहा है। इसका एकमात्र हल पूरे देश में प्रत्येक नौजवान को योग्यता अनुसार काम और काम के अनुसार दाम का कानून बनाने पर ही संभव है जिसके अंतर्गत अकुशल को 30000 अर्ध कुशल को 35000 कुशल को 45 000 तथा उच्च कुशल को₹60000 प्रति माह रोजगार की गारंटी होनी चाहिए ।इसका कानून संसद में पारित किया जाना चाहिए ।इस कानून का नाम "भगत सिंह राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून"BNEGA होना चाहिए सबको रोजगार देने के लिए तकनीक की उन्नति के अनुपात में 8 घंटे वाले  कार्य दिवस को 6 घंटे का करने का कानून भी संसद में पारित होना चाहिए। जिससे काम का समय25% घटेगा और रोजगार के अवसर33% बढ़ेंगे । ' सरबत के भले ' वाला समाज बनाया जाए।इसके अलावा कोई भी सूत्र बेरोजगारी को दूर नहीं कर सकता।




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सार्दुल सिंह
सचिव, भगत सिंह पुस्तकालय  श्री करनपुर


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