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महान देशभक्त, महान क्रान्तिकारी, आजादी के दीवाने शहीदों की कुर्बानी की शौर्य गाथा

महान देशभक्त, महान क्रान्तिकारी, आजादी के दीवाने शहीदों की कुर्बानी की शौर्य गाथा



शहीद दिवस’ भारत माँ के तीन महान सपूतों शहीद-ए-आजम भगत सिंह, अमर शहीद सुखदेव व अमर शहीद राजगुरु के बलिदानों एवं कुर्बानी की शौर्यगाथा दर्शाता है, जिन्होंने छोटी सी उम्र मात्र 23 वर्ष की आयु में हंसते-हंसते फांसी के झूले पर अपने प्राण त्याग दिये। तीनों शहीद सच्चे क्रान्तिकारी महान देशभक्त थे, जेा बिना किसी डर के जिए तथा बिना किसी डर के मरे। उन्हीं के बलिदानों के फलस्वरूप हम स्वतंत्र भारत में जी रहे हैं। महान देशभक्त स. भगत सिंह का जन्म सन् 1907 में पंजाब के लायलपुर, शहीद सुखदेव का सन् 1907 में लुधियाना तथा शहीद राजगुरू का जन्म सन् 1908 में पूणे (महाराष्ट्र) में हुआ। भगत सिंह को अपने पिता किशन सिंह व चाचा से मिले क्रान्तिकारी वातावरण से बचपन में ही आजादी का जुनून पैदा हो गया था। 

सुखदेव का पालन-पोषण करने वाले ताऊ लाला अचिन्तराम की विचारधारा से प्रभावित होकर इन्होंने मातृभूमि पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का निश्चय किया। शहीद राजगुरू को अपने पिताश्री हरिराजगुरू, जो क्रान्तिकारी थे, से देशभक्ति की प्रेरणा मिली। भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू में बचपन से ही ब्रिटिश सरकार के प्रति नफरत हो गई थी तथा वे देश केा आजाद करवाने के लिए बैचेन रहते थे। बचपन में भगत सिंह अपने पिता से कहते थे कि मैं खेत में बन्दूकें बो रहा हूँ तथा सुखदेव अपनी माँ से कहते थे - ‘माँ मुझे शादी नहीं करनी, मुझे फांसी पर चढऩा है।’ इन विचारों का ही प्रभाव था कि वे मातृभूमि पर मर मिटने के सपने देखा करते थे। भगत सिंह कहा करते थे कि बहरे कानों को सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत होती है व क्रान्ति विचारों की सान पर होती है। उन्होंने असहयोग आन्दोलनों में भाग लिया तथा कई बार जेल की यातनायें सहन की। जेल में वे रामप्रसाद बिस्मिल की पंक्तियां ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ गाते थे। जेल में रहते हुए उन्होंने आत्मकथा ‘दा डोर टू डेथ’, ‘आइडियल ऑफ सोशलिज्म’ जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखीं। जलियांवाले बाग में हुए हत्याकाण्ड में भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरू ने शपथ ली थी कि वे ब्रिटिश सरकार से जघन्य हत्याकाण्ड का बदला लेंगे तथा देश को गुलामी से आजाद करवायेंगे।

भगत सिंह ने 16 वर्ष की आयु में नौजवान सभा का गठन किया, जिसका उद्देश्य देश को आजादी दिलाना था। भगत सिंह कहते थे कि हम कब तक अंग्रेजों का जुल्म सहेंगे, गोली का जवाब गोली से देना होगा। अर्थात् हिंसा का जवाब हिंसा से ही देना होगा। वे आजाद भारत में ऐसी शासन प्रणाली स्थापित करना चाहते थे, जिसमें प्रजा खुशहाल हो तथा भारत शक्तिशाली व वैभव सम्पन्न बन सके।
उन्होंने समाज को शोषण व छुआछुत से मुक्त करवाने का संकल्प लिया तथा उनके द्वारा लगाये जाने वाला ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ का नारा लोगों में ऊर्जा भर देता था।

साइमन कमीशन के विरोध में लाठियों के प्रहार से मारे गये ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय की मौत का बदला तीनों ने मिलकर अंग्रेज ऑफिसर साण्डर्स की हत्या करके लिया। साण्डर्स हत्याकाण्ड में भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरू को फांसी की सजा सुनाई गई। वे जेल में यह गुनगुनाते कि ‘दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी’। उनको फांसी की सजा 24 मार्च, 1931 को मिलनी थी, परन्तु 1 दिन पहले ही शाम 7 बजे 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू को फांसी के फंदे पर लटका दिया। फांसी के फंदे को हंसते व चूमते हुए उन्होंने कहा था कि - ‘खुश रहो अहल-ए-वतन हम तो सफर करते हैं’, ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’, ‘भारत माता की जय हो’, ‘साम्राज्यवाद का नाश हो’।


भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू की कुर्बानी हमेशा याद रहेगी, जिन्होंने मानसिक व शारीरिक रूप से सोई हुई जनता को जागृत किया तथा देश को आजादी दिलाने के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी। वे युवा पीढ़ी के लिये हमेशा आदर्श व प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे। आजादी के दीवानों में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा। आज देश को शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरू जैसे युवाओं की जरूरत है, जो देश को सही दिशा दे सके, देश के गौरव व संस्कृति को जीवित रख सके तथा देश की आजादी को बचाये रखने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिये तैयार रहे। शहीद दिवस पर हम भारतवासी आजादी के दीवाने शहीद-ए-आजम भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरू को शत्-शत् नमन् करते हैं।

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